
देवभूमि देवतालाब विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत नईगढ़ी जनपद के ग्राम शिवराजपुर में श्मशान भूमि को लेकर पुराना विवाद एक बार फिर गहरा गया।
करीब 100 वर्षों से भी अधिक समय से शिवराजपुर तथा समीपवर्ती ग्राम डीहीया के भूमि-हीन, अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लोग पारंपरिक रूप से जिस स्थान पर अंतिम संस्कार करते आए हैं, अब उसी जमीन को कुछ लोग निजी भूमि बताते हुए अंतिम संस्कार करने से रोकते हैं। यह स्थिति हर महीने किसी न किसी परिवार के लिए अपमान और पीड़ा का कारण बनती आ रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह स्थान वर्षों से श्मशान भूमि के रूप में उपयोग होता रहा है, लेकिन अब निजी स्वामित्व का हवाला देकर विरोध किया जाता है। जब भी कोई मृत्यु होती है, तब परिजन शव लेकर श्मशान पहुंचते हैं और वहां अवरोध शुरू हो जाता है। कई मामलों में प्रशासनिक हस्तक्षेप के बाद ही अंतिम संस्कार संभव हो पाता है। ग्रामीणों का कहना है कि जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन स्थायी समाधान निकालने में अब तक असफल रहे हैं, जिससे मानवता को बार-बार शर्मसार करने वाली घटनाएं सामने आती रहती हैं।
आज शिवराजपुर में साकेत परिवार के अंतिम संस्कार के दौरान एक बार फिर ऐसी ही स्थिति बनी।
परिजन जब शव को लेकर श्मशान पहुंचे तो वहां मौजूद कुछ लोगों ने अंतिम संस्कार करने से रोक दिया। मजबूर होकर परिवारजन शव को वापस लेकर नईगढ़ी तहसील कार्यालय के सामने रखकर न्याय की मांग करने लगे।
मामले की गंभीरता को देखते हुए बसपा के प्रदेश महासचिव एवं पूर्व वरिष्ठ जिला पंचायत सदस्य इंजीनियर जयवीर सिंह सेंगर ने कलेक्टर मऊगंज, एसपी मऊगंज और आईजी रीवा श्री गौरव सिंह राजपूत से दूरभाष पर चर्चा कर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की। उन्होंने प्रशासन को अवगत कराया कि मृत्यु के बाद भी अगर अंतिम संस्कार में बाधा उत्पन्न की जाए तो यह सामाजिक संवेदना, मानवता और कानून — तीनों के खिलाफ है।
जानकारी मिलते ही एसडीएम मऊगंज और राजस्व विभाग की टीम तुरंत शिवराजपुर पहुँची।
अधिकारियों ने मौके पर निरीक्षण कर परिजन को अंतिम संस्कार के लिए जमीन उपलब्ध कराई और यह आश्वासन दिया कि श्मशान भूमि का स्थाई समाधान शीघ्र किया जाएगा, ताकि भविष्य में किसी परिवार को इस प्रकार की अपमानजनक स्थिति का सामना न करना पड़े।
घटना के बाद स्थानीय लोगों में प्रशासन की त्वरित कार्रवाई को लेकर राहत है, लेकिन वे अब भी स्थायी समाधान की मांग पर अडिग हैं, ताकि सामाजिक सौहार्द के साथ अंतिम संस्कार का अधिकार सुरक्षित रह सके।













